Sunday, January 13, 2013

               नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत


ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि हमारे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत कैसे हुई? मैं यहां कुछ नया कहने वाला नही हूँ, मेरी ये कोशिश केवल एक समाचार पत्र का एक टुकडा सुरक्षित करने की कोशिश मात्र है,  जय हिन्द।
11 अगस्त 2011 इन्डियाटाइम्स
     वाराणसी -- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए कई कमिटी और कमिशन बिठाए गए, कितनी किताबें लिखी गईं, लेकिन नेताजी के एक सहयोगी और प्रत्यक्षदर्शी से किसी ने कभी संपर्क नहीं किया।
     आजमगढ़ में इस्लामपुरा, बिलरियागंज में रहने वाले 107 साल के निजामुद्दीन खुद को आजाद हिंद फौज में नेताजीका ड्राइवर बताते हैं। निजामुद्दीन के मुताबिक उन्होंने 1942 में आजाद हिंद फौज जॉइन करने के बाद 4 साल नेताजी के साथ गुजारे।
     निजामुद्दीन को यकीन है कि नेताजी की मौत 1945 के प्लेन हादसे में नहीं हुई थी। निजामुद्दीन कहते हैं, ‘यह कैसे हो सकता है क्योंकि प्लेन हादसे के करीब 3-4 महीने बाद मैंने उन्हें कार से बर्मा और थाईलैंड की सीमा पर सितंगपुर नदी के किनारे छोड़ा था।
     निजामुद्दीन को इस बारे में कुछ भी पता नहीं कि जब उन्होंने नेताजी को नदी के किनारे छोड़ा, उसके बाद क्या हुआ। निजामुद्दीन के मुताबिक वह नेताजी के साथ ही रहना चाहते थे, लेकिन नेताजी ने उन्हें आजाद भारत में मिलने का वादा करके वापस भेज दिया था।
     करीब 10 साल बाद निजामुद्दीन की मुलाकात नेताजी के करीबी एक स्वामी से हुई थी। स्वामी नेताजी के संपर्क में थे। निजामुद्दीन के पास एक सर्टिफिकेट भी है जो आजाद हिंद फौज से उनका संबंध दिखाता है। इस सर्टिफिकेट से यह भी पता चलता है कि स्वामी का पूरा नाम एसवी स्वामी था और वह राहत और देश - प्रत्यावर्तन काउंसिल , पूर्व आजाद हिंद फौज और गठबंधन , रंगून के चेयरमैन थे। 1969 में निजामुद्दीन अपने परिवार के साथ भारत लौट आए।

ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है

 नाथूराम गोडसे का आखिरी पत्र : Nathuram Godse's last letter

प्रिय बन्धो चि. दत्तात्रय वि. गोडसे
              मेरे बीमा के रूपिया आ जायेंगे तो उस रूपिया का विनियोग अपने परिवार के लिए करना । रूपिया 2000 आपके पत्नी के नाम पर , रूपिया 3000 चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रूपिया 2000 आपके नाम पर । इस तरह से बीमा के कागजों पर मैंने रूपिया मेरी मृत्यु के बाद मिलने के लिए लिखा है ।
              मेरी उत्तरक्रिया करने का अधिकार अगर आपकों मिलेगा तो आप अपनी इच्छा से किसी तरह से भी उस कार्य को सम्पन्न करना । लेकिन मेरी एक ही विशेष इच्छा यही लिखता हूँ ।
              अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधु नदी है जिसके किनारों पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है ।
वह सिंधुनदी जिस शुभ दिन में फिर भारतवर्ष के ध्वज की छाया में स्वच्छंदता से बहती रहेगी उन दिनों में मेरी अस्थि या रक्षा का कुछ छोटा सा हिस्सा उस सिंधु नदी में बहा दिया जाएँ । मेरी यह इच्छा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद ओर भी एक दो पीढियों ( Generations ) का समय लग जाय तो भी चिन्ता नहीं । उस दिन तक वह अवशेष वैसे ही रखो । और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आया तो आपके वारिशों को ये मेरी अन्तिम इच्छा बतलाते जाना । अगर मेरा न्यायालीन वक्तव्य को सरकार कभी बन्धमुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मैं आपको दे रहा हूँ ।
              मैंने 101 रूपिया आपकों आज दिये है जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मन्दिर पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश के कार्य के लिए भेज देना ।
              वास्तव में मेरे जीवन का अन्त उसी समय हो गया था जब मैंने गांधी पर गोली चलायी थी । उसके पश्चात मानो मैं समाधि में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ । मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाएँ , जिसके लिए मैं उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ , किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था ।
              मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करें । अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना अगर पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है । अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है । मुझे विश्वास है की मनुष्यों के द्वारा स्थापित न्यायालय से ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमें मेरे कार्य को अपराध नहीं समझा जायेगा । मैंने देश और जाति की भलाई के लिए यह कार्य किया है । मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियों के कारण हिन्दुओं पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए । मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य ' नीति की दृष्टि ' से पूर्णतया उचित है । मुझे इस बात में लेशमात्र भी सन्देह नहीं की भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे ।
                 कुरूक्षेत्र और पानीपत की पावन भूमि से चलकर आने वाली हवा में अन्तिम श्वास लेता हूँ । पंजाब गुरू गोविंद की कर्मभूमि है । भगत सिंह , राजगुरू और सुखदेव यहाँ बलिदान हुए । लाला हरदयाल तथा भाई परमानंद इन त्यागमूर्तियों को इसी प्रांत ने जन्म दिया ।
                 उसी पंजाब की पवित्र भूमि पर मैं अपना शरीर रखता हूँ । मुझे इस बात का संतोष है । खण्डित भारत का अखण्ड भारत होगा उसी दिन खण्डित पंजाब का भी पहले जैसा पूर्ण पंजाब होगा । यह शीघ्र हो यही अंतिम इच्छा !

आपका
नाथूराम वि. गोडसे